बेटियों को नापसंद न करो ((हजरत मुहम्मद (सल्ल.)) !!
हजरत मुहम्मद (सल्ल.) का जन्म मक्का में हुआ । उस समय दुनियाभर में औरतों की स्थिति दयनीय थी । खुद अरब में नवजात बेटियों को जिंदा दफ्न करने की परंपरा थी ।
कुरआन में इस बाबत आया है कि और (इनका हाल यह है कि) जब इनमें किसी को बेटी होने की शुभ-सूचना मिलती है, तो उसके चेहरे पर कलौंस छा जाती है और वह जी ही जी में कुढ़कर रह जाता है । जो शुभ-सूचना उसे दी गई वह ऐसी बुराई की बात हुई कि लोगों से छुपता-फिरता है, (सोचता है) : अपमान स्वीकार करके उसे रहने दे या उसे मिट्टी में दबा दे । क्या ही बुरा फैसला है जो ये करते हैं । (सूरः नहल : 58-59)
इस घृणित परंपरा को खत्म कराने का सहरा हजरत मुहम्मद के सर बँधता है। यही नहीं आपने विभिन्न अवसरों पर औरतों को उनका पूरा हक देने, उनसे अच्छा बर्ताव करने तथा पूरा खयाल रखने के बारे में हिदायतें दीं । बेटियों के बारे में वे कहते हैं वह औरत बरकत वाली है जो लड़की को पहले जन्म दे । इसी तरह आपने बेटियों को माँ-बाप का दुख बाँटने वाली ठहराते हुए कहा कि बेटियों को नापसंद न करो, बेशक बेटियाँ गमगुसार हैं और अजीज ।
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