गुजरात दंगलीचे ‘पोस्टर बॉय’ एकत्र... गुजरात दंगलीतले दोन विरोधी चेहरे 'हिंदू-मुस्लिम' एकतेसाठी एकत्र येतात तेव्हा..

गुजरात दंगलीचे ‘पोस्टर बॉय’ एकत्र... गुजरात दंगलीतले दोन विरोधी चेहरे 'हिंदू-मुस्लिम' एकतेसाठी एकत्र येतात तेव्हा..



 




केरळमधील कान्नुर जिल्ह्यात हिंदू-मुस्लिम परिसंवादाचा कार्यक्रम आयोजित करण्यात आला होता. परिसंवादात दोन व्यक्ती कार्यक्रमाच्या प्रमुख स्थानी होत्या. दोन्ही व्यक्ती एकमेकांशी हसत छान गप्पा मारत होत्या.. एका घटनेतील छायाचित्रांमुळे या दोन्ही व्यक्ती माध्यमांमध्ये प्रकाशझोतात आल्या होत्या. ही छायाचित्रे होती २००२ साली झालेल्या गुजरात दंगलीची. छायाचित्रातील एक चेहरा दंगलीतील पीडिताचा आहे. रक्ताचे शिंतोडे शर्टावर उडालेले, डोळ्यांत अश्रू आणि हात जोडून दयेची विनवणी, तर दुसऱया बाजूला डोक्यावर भगवी पट्टी, चेहऱयावर राग-रोष आणि हातात लोखंडी सळी, मागे जाळपोळ..




 



दयेची विनवणी करताना दिसणारा व्यक्ती एक टेलर आहे. नाव- क्युताबुद्दीन अन्सारी, गुजरात दंगलीचा साक्षीदार आणि दुसरा दंगलीत सहभाग घेणारा अशोक मोची. हे दोघेही गुजरात दंगलीतील विरोधी चेहरे एकत्र आले होते 'हिंदू-मुस्लिम' एकतेसाठी. आज हे दोघेही आपआपले व्ययक्तीक जीवन जगत असले, तरी हिंदू-मुस्लिम एकता देशात अबाधीत राहावी या विचाराने दोघेही या परिसंवादात एकत्र आले होते. अशोक मोचीने या परिसंवादात झालेल्या चुकांची अन्सारी आणि संपूर्ण मुस्लिम समाजाची माफी मागितली. तसेच झालेला प्रकार आयुष्यातील वाईट घटनेप्रमाणे असल्याचेही त्याने म्हटले. दोघांनीही गुजरात दंगलीतील घटनांना उजाळा देऊन दंगलीचे आणि त्यानंतर निर्माण होणाऱया अडचणींचे भयाण रूप मांडले. देशातील एकतेमध्येच सर्वांचे भले आहे आणि यासाठी प्रत्येकाने प्रयत्न करायला हवेत असेही दोघे म्हणाले.



 


संदर्भ- http://www.loksatta.com/desh-videsh-news/attacker-victim-2-faces-of-gujarat-riots-come-together-for-hindu-muslim-unity-392500/?SocialMedia

 



धन्यवाद- Loksattha.
 



-----------------------------------------------------

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान दो ऐसे चेहरे उभरे जिन्हें इन दंगों का प्रतिनिधि चेहरा माना गया !!



साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान दो ऐसे चेहरे उभरे जिन्हें इन दंगों का प्रतिनिधि चेहरा माना गया। दुनिया भर मैं असंख्य बार ये दोनों चेहरे छप चुके हैं। एक है दाहिने हाथ में तलवार लिए और बाएं हाथ की मुट्ठी बांधे अशोक मोची का चेहरा, जो दंगाइयों की पहचान बन गया। दूसरा है हाथ जोड़े जान बचाने की गुहार लगाता कुतुबुद्दीन अंसारी का चेहरा, जो दंगा पीड़ितों की बेचारगी की पहचान बनकर उभरा। तीसरी तस्वीर पिछले दिनों तब सामने आई जब केरल के कन्नूर में एक कार्यक्रम के दौरान ये दोनों मंच पर एक-दूसरे से मिले। अवसर था अंसारी पर लिखी एक किताब के विमोचन का। दंगों में अपनी भूमिका के लिए जेल काट चुके बजरंग दल के पूर्व कार्यकर्ता अशोक ने कहा, 'मुझे इस बात का अहसास काफी देर से हुआ कि मैं लुटेरों के हाथ का औजार था। जो कुछ हुआ उसका मुझे अफसोस है।'

 




39 साल के अशोक गुजरात में हुए कथित विकास पर कहते हैं, 'कैसा विकास? मैं आज भी फुटपाथ पर ही हूं। अकेला ही रहता हूं क्योंकि शादी की तो परिवार को कैसे पालूंगा?' इतना ही नहीं, अशोक ने दंगों में अपनी भूमिका के लिए अंसारी से खास तौर पर माफी मांगी। हालांकि अंसारी के लिए यह पहला मौका नहीं था कि किसी हिंदू ने दंगों के लिए उनसे माफी मांगी हो, मगर फिर भी अशोक का माफी मांगना खास मायने रखता है। उन्होंने अशोक को भाई बताते हुए कहा, मुझे मालूम है कि दंगे अशोक ने नहीं करवाए थे, उसे तो लोगों ने इस्तेमाल किया था। खुशी की बात है कि अब वह बदल चुका है। अंसारी के साथ दंगों में चाहे जैसा भी सलूक किया गया हो, मोदी सरकार से उन्हें भी जिंदगी सुधारने का ऑफर जरूर मिला था। यह अलग बात है कि उन्होंने इस ऑफर को ठुकराने में एक पल की भी देर नहीं की। ऑफर यह था कि उन्हें जुहापुरा में फ्लैट दिया जाएगा और ढेर सारे पैसे भी मिलेंगे, बस एक विज्ञापन में वे कैमरे के सामने यह एक वाक्य बोल दें कि 'अभी गुजरात में अमन है'। अंसारी ने इनकार कर दिया क्योंकि उनके मुताबिक 'पैसों से ज्यादा अहम है इंसानियत।' उन्होंने कहा कि मेरे लिए अशोक मोची, नरेंद्र मोदी से कहीं बेहतर है क्योंकि उसने सबके सामने मुसलमानों से माफी मांग ली।

No comments:

Post a Comment

धन्यवाद !!

छत्रपती शिवाजी महाराज

ज्या काळी स्वातंत्र्याचा विचार करणंही जीवघेणं ठरायचं , त्या काळी ५ पातशाह्यांना तोंड देत हिंदवी स्वराज्याला स्वत:चं सिंहासन बहाल केलं ते छत्...