संत रविदास (संत रोहिदास) !!

 संत रविदास (संत रोहिदास) !!


गुरु रविदास का जन्म २५ फरवरी १४३३ यानि १३७६ ईसा में माघ पूर्णिमा, दिन रविवार को बनारस के नज़दीक सीरगोवर्धनपुर अथवा मांडूर्गढ़ नामक स्थान में एक चमार परिवार में हुआ था. रैदासी समुदाय में प्रचिलित एक पद “चौदह सौ तेंतीस को, माघ सुदी पन्दरास. दुखियों के कल्याण हित, प्रगटे सिरी रविदास”- उनकी इस जन्मतिथि की पुष्टि करता है.


वहीँ एक और रैदासी पद “पन्द्रह सौ चौरासी भई चित्तोर मह्भीर. जर-जर देह कंचन भई रवि मिल्यो सरीर” के अनुसार विक्रम संवत १५८४ में वे शहीद हुए थे.


रविदास के पिता का नाम रघुराम और माता का नाम करमा देवी था. इनके पितामह का नाम हरियानंद था और दादी का नाम चतर कौर. गुरुग्रंथ साहब में संकलित पदों में रैदास के चमार होने का उल्लेख बार-बार आया है.


“कही रविदास, खालसा चमारा. जो हम सहरी मीतु हमारा”

अर्थ- यानि “मैं खालिस चमार हूँ, जो मैं मेरे जैसे बोलता या सोचता है वह मेरे जैसा जागृत है है और मेरा मित्र है”


गुरु रविदास एक क्रांतिकारी महाकवि थे, जिन्होंने अपनी वाणी और विचार के माध्यम से ब्राह्मणवादी व्यवस्था पर करारे प्रहार करते हुए इसकी नींव हिला दी थी इसलिए ब्राह्मणवादियों ने अपनी संस्कृति को बचाने के लिए उल्टा रविदास को ही चमत्कारी व्यक्तित्व घोषित कर दिया और उनके जीवनी का उल्लेख करते हुए बहुत सी झूठी और मनगढंत घटनाएं गढ़कर उनके क्रांतिकारी और वैज्ञानिक विचारों को दबाने का कुत्सित प्रयास किया. जैसे- उनका कठौते से कंगन निकालना, अपने शरीर को चीर कर जनेऊ दीखाना, अपने पूर्वजन्म में ब्राह्मण होने के कारण अपनी पैदाइश के समय से ही अपनी चमार माँ का स्तनपान पान करने से इनकार करना आदि.


जाहिर है इन सब अवैज्ञानिक बातों को रविदास के जीवन से जोड़कर ब्राह्मणवादियों ने दलित-बहुजनों को रविदास की क्रांतिकारी-तार्किक शिक्षा से दूर कर उन्हें अंधविश्वास और कल्पनालोक में धकेल कर हिंदूवाद को सफलता से मज़बूत किया.


गौरतलब है कि ऋग्वेद के पुरुषसुक्त में कहा गया है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का जन्म ब्रह्मा के मुख से हुआ है. यह सूत्र ही जातिवाद का आधार भी है. पर गुरु रविदास ने इस झूठी बात को सिरे से नकारते हुए कहा-


“ब्राह्मण खतरी, वैस सूद जनम ते नाही. जो चाइह सुबरन कउ, पावै करमन माहि”

अर्थात, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का जन्मगत आधार समाज विरोधी है. जन्म के आधार पर कोई प्रज्ञावान, बलवान और धनवान नहीं होता, बल्कि व्यक्ति अपने कर्म से श्रेष्ठ और निकृष्ट होता है.


रविदास आगे कहते हैं -

“रविदास एके ब्रह्म का, होई रह्यो सगल पसार. एके माटी सब सजरे, एके सभ कूं सिरजनहार”

अर्थात, संसार के सारे प्राणी एक ही मिट्टी से निर्मित हैं. इस सब का रचनाकार भी एक ही है. अर्थात सभी मानव का शरीर एक ही जैसा है और सभी की उत्पत्ति भी एक बिंदु से होती है. ऐसे में ब्राह्मण और शूद्र के भेद का भला क्या आधार है.


वर्णवाद से होने वाले नुकसान को बताते हुए रविदास कहते हैं “जात-पांत के फेर महि, उरझी रही सभ लोग. मानुषता कूं खात हई, रविदास जात कर रोग”


अर्थात जात-पांत के चक्कर में सारा समाज ही जटिल हो चूका है. सब लोग जाति के जाल में उलझे हुए हैं और उन्होंने अपनी सोच एकदम संकीर्ण बना रखी है. जिससे मानवता के लिए कोई जगह नहीं बची. इस जाति रुपी रोग ने मनुष्यता को नष्ट कर डाला है.


रविदास के ये शब्द उन्नीसवीं सदी में डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर द्वारा तैयार भाषण ‘एन्हीलेशन ऑफ कास्ट’ में उभरे है. जहाँ मानवता के मसीहा डॉ आंबेडकर पृ. ५६ में कहते हैं “जाति ने जन-चेतना को नष्ट कर डाला है, जाति ने लोगों में कल्याणकारी भावों को कुचल दिया. दया, प्रेम सहानुभूति, अपनत्व जैसे भावों को केवल अपनी जाति में ही सीमित कर दिया यह सब केवल अपनी जाति से ही शुरू होता है और अपनी जाति के साथ ही खत्म हो जाता है”


गुरु रविदास भी तो समाज को आगाह करते हुए कहा करते थे-

“जात-पांत में जात है, जो केलन की पात. रविदास न मानुष जुड सकैं, जो लौ जात न जात”

अर्थ- यानि जिस प्रकार केले के एक पत्ते के बाद दूसरा और फिर तीसरा और अंतहीन पत्तों का सिलसिला शुरू हो जाता है उसी प्रकार जाति से उत्पन्न वर्गीकृत असमानता से मानवता के लिए कोई जगह नहीं बचती.


रविदास के विचारों को आगे बढाते हुए डॉ आंबेडकर ने जाति व्यवस्था को समूल नष्ट करने के लिए सहभोज और अंतरजातीय विवाह की आवश्यकता पर बल दिया था.


डॉ आंबेडकर जैसें महापुरुषने "द अनटचेबल" नानका अपना ग्रंथ गुरु रविदास यांना समर्पित कीया था.

गुरु रविदास आजीवन पथिक और पथप्रदर्शक बने रहे, उनका स्पष्ट मानना था कि संसार की प्रत्येक वस्तु अनित्य है, क्षणभंगुर है यानि सभी चीज़ों को एक दिन जाना ही है. इसलिए क्यों न इस शरीर को समाज के निर्माण में लगाया जाए. उनके अनुसार किसी बात को ठीक से सोच विचार कर बुद्धि की कसौटी पर परख कर ही मानना चाहिए. उन्होंने श्रम की महत्ता पर अत्यधिक बल दिया और आजीवन वैज्ञनिक-मानववाद के प्रचार में सक्रीय रहे पर बड़े दुःख कि बात है कि आज लोग रविदास को उनके विचारों से कम और उनके चमत्कारों के लिए अधिक जानते हैं.

 

 संत रविदास (संत रोहिदास) जी का गुढ मृत्यु हुआ था.


संत शिरोमणी रोहीदासनी चालविलेल्या कर्मकांड मुक्तीच्या विचार प्रवाहात त्यांच्या अनुयायांनी चालणे काळाची गरज आहे. अन्यथा संत शिरोमणी रोहिदास महाराजांचे अस्तित्व नष्ट होण्यास काहीच कालावधी लागणार नाही. जागे व्हा... सच्चा अनुयायी बना.


समानतेचे तत्व मांडणारे जगातील पहिले संत रविदास (संत रोहिदास) !!

 
जय संत रोहिदास !!


लेखं- डॉ. विजय कुमार


17 comments:

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  2. जय शिरोमणी संत रोहिदास महाराज ….!

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  3. 'दर्शनशास्त्र'- 'लोकायत' ग्रंथ ही भारत के आध्यात्मिक ग्रंथ होने चाहिए. 'भगवद्गीता' नही।

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    1. क्यु भाई एसा क्यु???

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  4. जय रोहिदास महाराज

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  5. धन धन गुरुदेव! जय रविदास ! जय भिम ! जय भारत !
    ब्राम्हनो ने हमेशा असली इतिहास को दबाकर मनघडत ब्राम्हनहित जिसमे है वही इतिहास पढाने की कोशिश की है ! तमाण बहुजन संतों की विशिष्ट जाती तक ही सिमीत रखने के लिए बारबार उनके जाती का उल्लेख होता है लेकीन ब्राम्हण संत हो तो उसे स्वामी, माऊली, सद्गुरु ऐसी पदवी दि जाती है, अब इनके दुष्कर्म समाज जान गया तो पैरो तले जमीन खिसकने लगी तो ये जातिय दंगेफसाद कराने लगे!

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  6. .....श्री....परखडवादी.मत.मांडणारे

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  7. जन्म आणि मृत्यू ची तारीख योग्य वाटत नाही किती वर्षे जगले संभ्रम

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  8. 1st thing,Sant Ravidas was not a chamar.The Chamar community that exists in India today who are also known as Chambhar in Maharashtra are actually CHAVAR VANSHI KSHATRIYA.These people have a great history of keeping Hinduism alive in India during 16th Century.They were pushed into this work by Sikandar Lodhi.In reality they are Warriors.The name of this community(CHAVAR VANSHI KSHATRIYA) is mentioned in MAHABHARAT.

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  9. Sant rohidas is not chamar he is kshatriya according to history Muslims forced sant rohidas to accept Islam but sant rohidas didn't accept Islam then muslims locked sant rohidas at jail and given the work of remove skins of animals to make leather


    Your story is absolutely wrong ......

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धन्यवाद !!

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